नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-29

"आखिर ऐसा चयन क्यों लक्षणा "?? क्या वाकई सोच समझ कर फैसला लिया है, या सिर्फ ऐसे ही,,,,,! तुम तो अभी थोड़े समय पहले अपने सखा के लिए संपूर्ण जलाशय को सुखाने की बात कर रही थी। और अभी उसे छुड़ाने की बजाय तुम उन प्राणियों को बचाने की बात कर रही हो। जिनसे तुम्हारा कोई लेना-देना नहीं है। आखिर क्यों??

आखिर यह तुम्हारे हृदय की विशालता है, या तुम्हें अपने सखा का मोह समाप्त हो गया?? या फिर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का संपूर्ण श्रेय अकेले ही प्राप्त करना चाहती हो?? कहो लक्षणा... पुनः विचार का मौका चाहिए या तुम्हारा यह अंतिम निर्णय है। और फिर यह भी तो सोचो कि यदि तुमने यह श्रेष्ठ नागमणि मुझे सौंप दिया, तब तो तुम अपने लक्ष्य तक पहुंच ही ना पाओगी। क्योंकि नागपत्री तक पहुंचने की एक शर्त यह भी है, कि उसके लिए सर्प रूप में ही उस तक पहुंचा जा सकता है।

किसी और काया को वहां तक पहुंचने की किसी और को अनुमति ही नहीं। लक्षणा जब तुम यह नागमणि मुझे सौंप दोगी, तब तुम्हारा लक्ष्य ही दूर हो जाएगा। आखिर क्यों?? इन सबके लिए अपने जीवन के लक्ष्य को ठुकराती हो। अब तो तुम पूर्ण समर्थ भी हो। फिर कदंभ की भी तुम्हें आवश्यकता नहीं। महज मित्र होने की इतनी बड़ी कीमत चुकाना कोई समझदारी तो नहीं??

सोच लो लक्षणा,,,,, एक बार पुनः विचार का मौका मैं तुम्हें देना चाहती हूं। कहते हुए देवी भावपूर्ण मुद्रा में लक्षणा की और देखने लगी। लक्षणा ने उन्हें प्रणाम कर बड़े आदर पूर्वक जवाब दिया......हे देवी,,,आपका कथन सत्य है, कि इस मणि के बिना मैं अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाऊंगी। लेकिन मैं उस लक्ष्य पूर्ति का करूंगी ही क्या, जिसका मूल उद्देश्य ही जगत कल्याण है।

हे देवी,,,,,जब प्रत्यक्ष में मौका रहते हुए मैं इन पशु पक्षियों का, जो अभी कष्ट में है, का दुख दूर न कर पाई। तब उस शक्ति को पाकर भी उसे पाना निरर्थक हो जाएगा। और रही बात मेरे सखा की तो हम दोनों ही सर्व समस्त और शक्तिमान है। हमारा मूल उद्देश्य जन कल्याण का ही है। तब भला कैसे हम दोनों अपने मूल उद्देश्य का त्याग कर इन पशु पक्षियों, कीट-पतंगों को अपने सामने प्राण गवाते देखना चाहेंगे।

हे देवी,,,अगर इसके बदले में आपने मेरी संपूर्ण शक्तियों को भी मांगा होगा। तब भी मैं इनकार नहीं करती। मैं अपनी पूर्ण सहमति के बिना किसी झिझक के उस बहुमूल्य नागमणि को आपको सौंपती हूं। जो कुछ समय पहले ही कुलदेव ने मुझे प्राप्त किया था। जिसके बिना लक्ष्य प्राप्त संभव नहीं है।

हे देवी,,,,मुझे ऐसा लक्ष्य नहीं प्राप्त करना जो किसी भी प्राणी की आहुति देकर मिले। इसलिए मेरा यह अंतिम निर्णय समझ मेरी इस भेट को स्वीकार करें। इस बवंडर के दिए जाने वाले कष्ट से इन्हें यथावत अतिशीघ्र पहुंचा दिए जाए। कहते हुए लक्षणा ने वह मणी उन देवी को सौंप दिया। और देखते ही देखते सारे पशु पक्षी, कीट पतंगे और अन्य जो कुछ भी बवंडर की चपेट में था। सब कुछ सिर्फ कदंभ को छोड़कर अपने-अपने अपने स्थान पर पहुंच गए।

एकमात्र कदंभ उस बवंडर से घूमते हुए नजर आने लगा। और लक्षणा साफ देख सकती थी, कि कदंभ के लिए उस बवंडर से निकल पाना लगभग असंभव सा था। और ऐसी स्थिति में वह अपने मित्र को छोड़कर जा भी नहीं सकती थी । तब लक्षणा पुनः विनती कर कहने लगी, हे देवी क्या एक और कृपा मुझ अभागन पर हो सकती है?? क्या कोई और उपाय शेष हैं?? जिसके बदले में मैं अपने मित्र को छुड़वाने का यत्न कर सकती हूं।

तब वह देवी बवंडर की और देख मुस्कुराकर कहने लगी। लक्षणा वास्तव में यह बवंडर एक श्रापित राजकुमार है। जिसने वर्षों पहले शिक्षा अध्ययन के दौरान जब गुरुकुल में महायज्ञ चल रहा था। तब अपनी प्रवृत्ति के अनुसार अचानक तेज भूख लगने पर बिना भोग लगाए प्रसाद से पूर्व ही, छुपकर प्रसाद की खीर खा ली। जिससे इनके गुरु ने इन्हें श्राप दिया था, कि तुम इसी समय ऐसा बवंडर बन जाओ जिसकी भूख कभी शांत नहीं होती। और यह भी शांत रखना जैसे इस फल से इतने आश्रमवासी वंचित है, ठीक उसी प्रकार तुम्हारी चपेट में आकर मारे गए उन समस्त व्याकुल प्राणियों और नुकसान पर उठी हाय का पाप भी तुम्हें ही भोगना होगा।

लेकिन तभी गुरु माता ने उनकी ओर से क्षमा याचना कर बालक की भूल माफ कर देने की प्रार्थना की। तब बहुत विनय के बाद इनके गुरु ने बात मानकर गुरुमाता का मान रख यह बात कही, कि जब भविष्य में कोई अपनी ऐसी शक्ति को, या वरदान को उन्हें सौंप दें, जिससे ना तो प्राणी को भूख और प्यास लगे। और ना ही उसे किसी भी प्रकार का कोई भी व्याधि (रोग) हो।

क्या लक्षणा ऐसा कोई वरदान तुम्हें प्राप्त है, कहते हुए देवी ने लक्षणा की ओर इशारा करके कहा। तब सहर्ष लक्षणा ने कहा, ऐसा वरदान मुझे प्राप्त है। और मैं पूर्ण संकल्प के साथ यह वरदान जो कि मुझे मार्ग में आने वाली कठिनाइयों से बचने के लिए प्राप्त हुआ था। वह भी मैं राजकुमार को श्राप से मुक्ति हेतु प्रदान करती हूं। और विनती करती हूं कि इन्हें एक छोटे से भूल की जो सजा प्राप्त हुई है, उससे उठने वाले दर्द से इन्हें मुक्ति मिले।

लक्षणा ने यह कहते हुए उसी सरोवर का जल हाथ में ले उस मंत्रित जल को उस बवंडर की ओर उछाला, और देखते ही देखते कदंभ मुक्त होकर, और कदंभ के साथ ही एक सुंदर राजकुमार वहां प्रकट हुआ। वह राजकुमार लक्षणा को प्रणाम कर कहने लगा। लक्षणा तुम वाकई इस युग में नागपत्रियोंं को प्राप्त करने की सच्ची अधिकारी हो। जिसने सर्वप्रथम निरीह प्राणियों को बचाया। जिसके पश्चात कदंभ को बचाने के साथ ही साथ तुम्हारे मन में मेरे लिए करुणा का भाव उपजा। और तुमने अपनी इस अमूल्य शक्तियां वरदान को मुझे सौंपा।

लक्षणा जिसे अमृत्व प्राप्त करने सा अनुभव प्राप्त होता है। क्योंकि फिर उसे भूख प्यास या रोग किसी भी चीज की चिंता नहीं होती। जिसके लिए ही कोई भी प्राणी संपूर्ण जीवन यत्न करता रहता है। लक्षणा तुम्हारा कोटि-कोटि धन्यवाद कहते हुए, राजकुमार उस देवी के समीप पहुंचा और दोनों कुछ विचार करने लगे।

क्रमशः...

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